भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए दोतरफा रणनीति बनाई थी। पहली थी केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों में कमी ढूंढ निकालना और दूसरी थी विकास का उससे बेहतर मॉडल पेश करने की, लेकिन केजरीवाल की चतुराई के आगे न तो ये दोनों काम आईं और न ही राष्ट्रवाद का नारा।
इस रणनीति को धरातल पर उतारने के लिए पार्टी ने दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश और बिहार तक से कार्यकर्ता और नेता बुलाए थे। भाजपा के प्रचार की कमान संभाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने सांसदों को भेज केजरीवाल की फ्लैगशिप योजनाओं, मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी स्कूलों की दुर्दशा वाली तस्वीर पेश करने की कोशिश की, लेकिन केजरीवाल की सोशल मीडिया टीम ने ऐसे सभी प्रचारों का तुरंत खंडन कर दिया।
भाजपा सांसदों की हर तस्वीर पर आम आदमी पार्टी ने उन स्कूलों या मोहल्ला क्लीनिक की सही स्थिति बयान की। कहीं पर स्कूल की पुरानी इमारत बंद हो चुकी थी और उसे नई इमारत में शिफ्ट कर दिया गया था या फिर मोहल्ला क्लीनिक के सामने दिख रहा कूड़े का ढेर भाजपा शासित नगर पालिका की लापरवाही का नतीजा था।
साथ ही भाजपा ने घोषणा पत्र में आम आदमी पार्टी से बेहतर और ज्यादा वादों की झड़ी लगा दी। दो रुपए किलो आटा, आयुष्मान योजना के तहत पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा, कॉलेज छात्राओं को इलेक्ट्रिक स्कूटी, स्कूल छात्राओं को मुफ्त साइकिल के अलावा बिजली और पानी पर सब्सिडी के वादे दिल्ली की जनता को आसानी से लुभा सकते थे।
हालांकि, केजरीवाल ने चालाकी दिखाई। उन्होंने कहा यदि भाजपा दिल्ली की जनता को ये सब देना चाहती है तो उससे पहले उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में इन योजनाओं में लागू करके दिखाएं, क्योंकि इन राज्यों में उसकी सरकार है। एनसीआर के नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद और गुड़गांव जैसे उप शहरों में यदि भाजपा यह सुविधाएं दे देती है, तो ही दिल्ली के लोगों को भरोसा होगा कि उन्हें भी ये सुविधाएं मिल पाएंगी।
विकास के दोनों तीर खाली जाने के बाद भाजपा के पास राष्ट्रवाद का ब्रह्मास्त्र ही बचा था। पार्टी ने बार-बार आप को नागरिकता संशोधन कानून और शाहीन बाग जैसे मुद्दों पर बहस करने की चुनौती दी और बार-बार केजरीवाल इन मुद्दों से किनारा करते रहे। हर बार उनका यही कहना था कि ये सब राष्ट्रीय मुद्दे हैं और लोकसभा चुनाव के लिए ही ठीक है। विधानसभा चुनाव में सिर्फ लोगों की जरूरतों पर चर्चा होनी चाहिए।
भाजपा नेताओं ने इसी बौखलाहट में केजरीवाल को कभी आतंकवादी करार दिया तो कभी शाहीन बाग में धरने पर बैठे लोगों को देशद्रोही, जिन्हें गोली मार दी जानी चाहिए। दिल्ली की जनता इस भड़काऊ राजनीतिक विमर्श से ऊब गई। हालांकि इससे भाजपा का कोर समर्थक वर्ग खुश था और मध्यमवर्ग का राजनीति से उदासीन एक हिस्सा भी उसके साथ आया।
इसी वजह से भाजपा का मत-प्रतिशत पिछली बार के 33 प्रतिशत से बढ़कर 38 से अधिक हो गया। लेकिन उसे यह बढ़ोतरी कांग्रेस के घटे वोट बैंक से मिली। लेकिन आम आदमी पार्टी का मत प्रतिशत अधिक नहीं घटा। इन्हीं कारणों से भाजपा अधिक सीट जीतने में नाकामयाब रही और आप को एक बार फिर धमाकेदार जीत हासिल करने में सफलता मिली।